Thursday, December 15, 2011

झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..


शून्य से, अपार से,
बदिराओं की हुंकार से,
ब्रह्मांड भर के भार से,
अम्बर कभी झुका है क्या..
कर्तव्य की पुकार से,
कठिनाई की ललकार से,
इच्छाओं के विकार से,
तू झुका है क्यूं..

प्रकाश के प्रहार से,
निशा के अंधकार से,
पुनः पुनः के वार से,
सूरज कभी थका है क्या..
प्रयास का अपमान कर,
स्वयं को क्षीण जान कर,
क्षण में हार मान कर,
तू थका है क्यूं..

सूखे से या अकाल से,
आंधी से या भूचाल से,
जीवन से या कि काल से,
समय कभी रुका है क्या..
वो खो गया है इसलिये,
तू रो गया है इसलिये,
कुछ हो गया है इसलिये,
तू रुका है क्यूं..

अम्बर से.. सूरज से.. समय से ज्ञान ले,
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..
झुकेगा ना थकेगा ना रुकेगा ठान ले..

2 comments:

  1. jawab nai saaheeb ka............

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  2. प्रभावशाली रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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