Tuesday, November 15, 2011

ये सच नहीं, के मोहब्बत ये बस इक बार है मुमकिन..


ये-सच-नहीं, के-मोहब्बत ये-बस-इक-बार-है-मुमकिन,
ना-झूठ ये के-फिर-ना अब किसी से-प्यार-है-मुमकिन,
ना-ऐसा ही, के-मैं-तौबा ही-कर गया हूं इश्क़ से,
ना यूं ही-है, के-फिर किसी पे ऐतबार-है-मुमकिन..

सभी को है ख़बर, ना-सहरा में बहार है मुमकिन,
ना ठेस पहुंचा हुआ दिल-ही बे-दरार है मुमकिन,
मग़र करूं, तो-क्या शिक़वा करूं मैं अपनी समझ से,
हो जिसको इश्क़, भला कैसे होशियार है मुमकिन,

ना भूलता है वो भूले, ना यादगार है मुमकिन,
मेरी यादों पे वो लम्हा, बड़ा दुश्वार है मुमकिन,
है ये मालूम, के वो बेवफ़ा, था बेवफ़ा लेकिन,
ना कहना, उस हसीं-ग़द्दार को ग़द्दार, है मुमकिन..

कभी लगता है, अब-भी थोड़ा इंतज़ार है मुमकिन,
ज़रा दीदार, या इज़हार, या इक़रार है मुमकिन,
हज़ारो कोशिशें की, मर्ज़ मेरा दूर हो, लेकिन,
कहीं बाक़ी अभी-भी, थोड़ा सा बुख़ार, है मुमकिन,

के जैसे बिन पिये कभी-कभी, ख़ुमार है मुमकिन
हाँ वैसे ही, बिना-दर दिल-की-भी दीवार है मुमकिन,
जो ना समझे शुमार हार, कभी हश्र-ए-इश्क़ में,
उसे बेकार इक मज़ार बिन दीवार, है मुमकिन..

ये माना, मुश्किलों से मंज़िल-इख़्तियार है मुमकिन,
मगर इस इश्क़ की राहों में बस गुबार है मुमकिन,
वहाँ ना दिल के बदले दिल की रख उम्मीद तू 'घायल'
जहाँ के इश्क़ का, हर मोड़ पे बाज़ार है मुमकिन..

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