Wednesday, February 23, 2011

इंसान की दुम...

सुना था फैसला जन्नत का, मरने बाद होता है,
ना जाने मैं मरा हूं या नहीं, पर ये जहन्नुम है.. 


अगर जीना यही है तो ख़ुदा, बहकाया मुझको क्यूँ,
बड़ा कहता था दुनिया में, तबस्सुम-ओ-तरन्नुम हैं..

जो आता है यहाँ हर पल, तड़पता और रोता है,
यही दुनिया है तेरी तो, वो सारे सुख कहाँ गुम हैं..

इन्ही के बीच रहना था, दरिंदा मैं भी बन आता,
दिखा इंसान कोई, ना दिखी इंसान की दुम है..

5 comments:

  1. जो आता है यहाँ हर पल, तड़पता और रोता है,
    यही दुनिया है तेरी तो, वो सारे सुख कहाँ गुम हैं..
    अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

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  2. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद..

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