Friday, February 4, 2011

शिद्दत..


जब यूँही कभी बैठे बैठे कुछ याद पुरानी आती है,
हँसती पलकों को झपकाती तस्वीर तेरी बन जाती है,
मुस्कान लबों पे लाती है, कुछ पलकें नम कर जाती है,
उस वक़्त तेरी याद आती है, शिद्दत से तेरी याद आती है..

जब भीड़ में पूरी दुनिया की हम खुदको तन्हा पाते हैं,
आदत जब होती है गम की, हम सोच खुशी घबराते हैं,
एक परछाई सी हाथ पकड़ जब राह हमें दिखलाती है,
उस वक़्त तेरी याद आती है, शिद्दत से तेरी याद आती है..

जब हँसो का जोड़ा कोई एक साथ गगन में उड़ता है,
फिर पा के अकेला ख़ुदको एक सैलाब सा मन में उठता है,
और सोच के अपना हाल-ए-दिल जब मायूसी छा जाती है,
उस वक़्त तेरी याद आती है, शिद्दत से तेरी याद आती है..

जब चाँद में कर दीदार तेरा, ये पगला छुप-छुप रोता है,
अश्रू धारा से सींच नया, उम्मीद का पौधा बोता है,
इस दिल की हर धड़कन से तब, आवाज़ यही बस आती है,
मुद्दत से तेरी याद आती है, शिद्दत से तेरी याद आती है..

हर वक़्त तेरी याद आती है, शिद्दत से तेरी याद आती है...!!

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